कभी चंचल कभी सौम्य
कितने भाव बदलता है
कभी काला कभी निराला
कितने रंग बदलता है ये मन
कभी गहरा कभी सतही
कितने मर्म छुपाता है
कभी जिज्ञासू कभी शिथिल
कितनी गुत्थियाँ खोलता है ये मन
कभी आहत कभी हर्षित
कितने घाव भरता है
कभी अजेय कभी पराजित
कितने युद्ध लड़ता है ये मन
कभी दुपहरि कभी शाम
कितने दिन गिनता है
कभी पतंग कभी धरा पर
कितनी उड़ाने भरता है ये मन
कभी विह्वल कभी विभोर
कितनी अठखेलियाँ खेलता है
कभी सुरमयी कभी नीरस
कितनी कवितायें लिखता है ये मन